समझ आता है हम को दुख बड़ों का By Sher << ये तिरी मर्ज़ी है अब चाक ... रातों की नींद एक परी-ज़ाद... >> समझ आता है हम को दुख बड़ों का हम अपने घर के बच्चों में बड़े हैं Share on: