समझने से रहा क़ासिर कि दानिस्ता नहीं समझा By Sher << क़ातिल ने किस सफ़ाई से धो... मैं किस लिए तुझे इल्ज़ाम-... >> समझने से रहा क़ासिर कि दानिस्ता नहीं समझा न जाने क्यूँ हमारी प्यास को दरिया नहीं समझा Share on: