सर पर हवा-ए-ज़ुल्म चले सौ जतन के साथ By Sher << समझेगा आदमी को वहाँ कौन आ... यूँ इंतिज़ार-ए-यार में हम... >> सर पर हवा-ए-ज़ुल्म चले सौ जतन के साथ अपनी कुलाह कज है उसी बाँकपन के साथ Share on: