सरों पे ओढ़ के मज़दूर धूप की चादर By Sher << गुलज़ार में वो रुत भी कभी... ज़िंदगी जिस ने तल्ख़ की म... >> सरों पे ओढ़ के मज़दूर धूप की चादर ख़ुद अपने सर पे उसे साएबाँ समझने लगे Share on: