नाज़ुक था बहुत कुछ दिल मेरा ऐ 'शाद' तहम्मुल हो न सका By Sher << निगाह-ए-नाज़ से साक़ी का ... नज़र की बर्छियाँ जो सह सक... >> नाज़ुक था बहुत कुछ दिल मेरा ऐ 'शाद' तहम्मुल हो न सका इक ठेस लगी थी यूँ ही सी किया जल्द ये शीशा टूट गया Share on: