शायद मिज़ाज हम से मुकद्दर है यार का By Sher << कुछ ऐसे दौर भी ताहम गिरफ़... कल जो ज़िक्र-ए-जाम-ओ-मीना... >> शायद मिज़ाज हम से मुकद्दर है यार का लिक्खा है उस ने हम को ब-ख़्त्त-ए-ग़ुबार ख़त Share on: