शिकस्त-ए-दिल की हर आवाज़ हश्र-आसार होती है By Sher << कल कहते रहे हैं वही कल कह... झिलमिलाते हुए अश्कों की ल... >> शिकस्त-ए-दिल की हर आवाज़ हश्र-आसार होती है मगर सोई हुई दुनिया कहाँ बेदार होती है Share on: