शिकस्त-ए-साग़र-ए-दिल की सदाएँ सुन रहा हूँ मैं By Sher << हम नींद की चादर में लिपटे... मिलती है ग़म से रूह को इक... >> शिकस्त-ए-साग़र-ए-दिल की सदाएँ सुन रहा हूँ मैं ज़रा पूछो तो साक़ी से कि पैमानों पे क्या गुज़री Share on: