सुबू उठाऊँ तो पीने के बीच खुलती है By Sher << अब मुझ ज़ईफ़-ओ-ज़ार को मत... ज़िंदगी अपनी मुसलसल चाहतो... >> सुबू उठाऊँ तो पीने के बीच खुलती है कोई गली मेरे सीने के बीच खुलती है Share on: