एक दो रोज़ का सदमा हो तो रो लें 'फ़ाकिर' By Sher << ये मैं हूँ ख़ुद कि कोई और... देखते रहते हैं छुप-छुप के... >> एक दो रोज़ का सदमा हो तो रो लें 'फ़ाकिर' हम को हर रोज़ के सदमात ने रोने न दिया Share on: