सुकून दे न सकीं राहतें ज़माने की By Sher << क्या मौसमों के टूटते रिश्... मिरी नज़र तो ख़लाओं ने बा... >> सुकून दे न सकीं राहतें ज़माने की जो नींद आई तिरे ग़म की छाँव में आई Share on: