तड़प उठी है किसी नगर में क़याम करने से रूह मेरी By Sher << हमारा 'मीर'-जी... मेरा होना भी कोई होना है >> तड़प उठी है किसी नगर में क़याम करने से रूह मेरी सुलग रहा है किसी मसाफ़त की बे-कली से दिमाग़ मेरा Share on: