तमाम आलम से मोड़ कर मुँह मैं अपने अंदर समा गया हूँ By Sher << अगर जहाँ में कोई आइना नही... शब-ए-दराज़ का है क़िस्सा ... >> तमाम आलम से मोड़ कर मुँह मैं अपने अंदर समा गया हूँ मुझे न आवाज़ दे ज़माने मैं अपनी आवाज़ सुन रहा हूँ Share on: