तमाम दर्द के रिश्तों से वास्ता न रहे By Sher << दिल की तरफ़ 'शकील'... जैसा मंज़र मिले गवारा कर >> तमाम दर्द के रिश्तों से वास्ता न रहे हिसार-ए-जिस्म से निकलूँ तो बे-सदा हो जाऊँ Share on: