तार-ए-नज़र भी ग़म की तमाज़त से ख़ुश्क है By Sher << बुरा मानिए मत मिरे देखने ... दर्द-ए-महरूमी-ए-जावेद भी ... >> तार-ए-नज़र भी ग़म की तमाज़त से ख़ुश्क है वो प्यास है मिले तो समुंदर समेट लूँ Share on: