जैसे मुमकिन हो इन अश्कों को बचाओ 'तारिक़' By Sher << कैसे रिश्तों को समेटें ये... इस सलीक़े से मुझे क़त्ल क... >> जैसे मुमकिन हो इन अश्कों को बचाओ 'तारिक़' शाम आई तो चराग़ों की ज़रूरत होगी Share on: