तिरे बदन की ख़लाओं में आँख खुलती है By बदन, जिस्म, हवा, Sher << वो काम रह के करना पड़ा शह... सोच लो ये दिल-लगी भारी न ... >> तिरे बदन की ख़लाओं में आँख खुलती है हवा के जिस्म से जब जब लिपट के सोता हूँ Share on: