थीं तुम्हारी जिस पे नवाज़िशें कभी तुम भी जिस पे थे मेहरबाँ By Sher << ज़िंदा कोई कहाँ था कि सदक... लिक्खे थे सफ़र पाँव में क... >> थीं तुम्हारी जिस पे नवाज़िशें कभी तुम भी जिस पे थे मेहरबाँ ये वही है 'अख़्तर'-ए-मुस्लिमी तुम्हें याद हो कि न याद हो Share on: