तिरे अबरू-ए-पेवस्ता का आलम में फ़साना है By Sher << ठीक आई तन पे अपने क़बा-ए-... तलब दुनिया को कर के ज़न-म... >> तिरे अबरू-ए-पेवस्ता का आलम में फ़साना है किसी उस्ताद शायर का ये बैत-ए-आशिक़ाना है Share on: