तिरे बग़ैर कोई और इश्क़ हो कैसे By Sher << नींद सीं खुल गईं मिरी आँख... मिल मिल गए हैं ख़ाक में ल... >> तिरे बग़ैर कोई और इश्क़ हो कैसे कि मुशरिकों के लिए भी ख़ुदा ज़रूरी है Share on: