तिरे ग़म के सामने कुछ ग़म-ए-दो-जहाँ नहीं है By Sher << ख़मोशी में हर बात बन जाए ... जिन से अफ़्साना-ए-हस्ती म... >> तिरे ग़म के सामने कुछ ग़म-ए-दो-जहाँ नहीं है है जहाँ तिरा तसव्वुर वहाँ ईन-ओ-आँ नहीं है Share on: