तिरे कूचे से जुदा रोते हैं शब को आशिक़ By Sher << वो ज़ुल्फ़-ए-पुर-शिकन लगत... रात का इंतिज़ार कौन करे >> तिरे कूचे से जुदा रोते हैं शब को आशिक़ आज-कल बारिश-ए-शबनम है चमन से बाहर Share on: