तिरी आवाज़ को इस शहर की लहरें तरसती हैं By Sher << सर्दी भी ख़त्म हो गई बरसा... एहसान नहीं ख़्वाब में आए ... >> तिरी आवाज़ को इस शहर की लहरें तरसती हैं ग़लत नंबर मिलाता हूँ तो पहरों बात होती है Share on: