तिरी बात लावे जो पैग़ाम-बर By Sher << हाजत चराग़ की है कब अंजुम... हर तरफ़ फैली हुई थी रौशनी... >> तिरी बात लावे जो पैग़ाम-बर वही है मिरे हक़ में रूह-उल-अमीं Share on: