तो ज़िंदगी को जिएँ क्यूँ न ज़िंदगी की तरह By Sher << मा'लूम है वादे की हक़... उन मकानों में भी इंसान ही... >> तो ज़िंदगी को जिएँ क्यूँ न ज़िंदगी की तरह कहीं पे फूल कहीं पर शरर बनाते हुए Share on: