तू जा रहा था बिछड़ के तो हर क़दम पे तिरे By Sher << दोस्ती को बुरा समझते हैं ख़ुद अपनी दीद से अंधी हैं... >> तू जा रहा था बिछड़ के तो हर क़दम पे तिरे फिसल रही थी मिरे पाँव से ज़मीन बहुत Share on: