तुम भी थे सरशार मैं भी ग़र्क-ए-बहर-ए-रंग-ओ-बू By Sher << हज़ार बार किया अज़्म-ए-तर... पाँव जब सिमटे तो रस्ते भी... >> तुम भी थे सरशार मैं भी ग़र्क-ए-बहर-ए-रंग-ओ-बू फिर भला दोनों में आख़िर ख़ुद-कशीदा कौन था Share on: