तुम्हारी गुफ़्तुगू से आस की ख़ुश्बू छलकती है By Sher << कमर बाँधी है तौबा तोड़ने ... लोगो! हम परदेसी हो कर जान... >> तुम्हारी गुफ़्तुगू से आस की ख़ुश्बू छलकती है जहाँ तुम हो वहाँ पे ज़िंदगी मालूम होती है Share on: