तुम्हें ही सहरा सँभालने की पड़ी हुई है By Sher << ज़ीस्त ने मुर्दा बना रक्ख... ज़मानों बा'द मिले हैं... >> तुम्हें ही सहरा सँभालने की पड़ी हुई है निकल के घर से भी हम तो घर से बंधे हुए हैं Share on: