उलझती जाती हैं गिर्हें अधूरे लफ़्ज़ों की By Sher << हाथ छुड़ा कर जाने वाले ऐ बहर न तू इतना उमँड चल म... >> उलझती जाती हैं गिर्हें अधूरे लफ़्ज़ों की हम अपनी बातों के सारे अगर मगर खोलें Share on: