उम्मीद-ए-वफ़ा के पेश-ए-नज़र मैं उन की जफ़ाएँ भूल गया By Sher << वफ़ा की आड़ में क्या क्या... न कुछ आलिम समझते हैं न कु... >> उम्मीद-ए-वफ़ा के पेश-ए-नज़र मैं उन की जफ़ाएँ भूल गया है मुस्तक़बिल पर आँख मिरी माज़ी को भुलाता जाता हूँ Share on: