उम्र-भर के सज्दों से मिल नहीं सकी जन्नत By Sher << हमा-तन हो गए हैं आईना ज़ाहिदो क़ुदरत-ए-ख़ुदा दे... >> उम्र-भर के सज्दों से मिल नहीं सकी जन्नत ख़ुल्द से निकलने को इक गुनाह काफ़ी है Share on: