उन्हीं के फ़ैज़ से बाज़ार-ए-अक़्ल रौशन है By Sher << उठ कर तो आ गए हैं तिरी बज... तुम्हारी याद के जब ज़ख़्म... >> उन्हीं के फ़ैज़ से बाज़ार-ए-अक़्ल रौशन है जो गाह गाह जुनूँ इख़्तियार करते रहे Share on: