वफ़ादारी ग़ुरूर-ए-बे-रुख़ी को ख़त्म कर देगी By Sher << ज़ुल्मतों का गुज़र कहाँ म... तिरे ख़याल में मैं हूँ मि... >> वफ़ादारी ग़ुरूर-ए-बे-रुख़ी को ख़त्म कर देगी ज़ियादा तो नहीं कुछ दिन रहें वो बद-गुमाँ शायद Share on: