वहशत में भी मिन्नत-कश-ए-सहरा नहीं होते By Sher << वो न जाने क्या समझा ज़िक्... उठो कि जश्न-ए-ख़िज़ाँ हम ... >> वहशत में भी मिन्नत-कश-ए-सहरा नहीं होते कुछ लोग बिखर कर भी तमाशा नहीं होते Share on: