वहशत-ए-दिल के ख़रीदार भी नापैद हुए By Sher << सोचता हूँ कि बुझा दूँ मैं... ऐ शैख़ मरते मरते बचे हैं ... >> वहशत-ए-दिल के ख़रीदार भी नापैद हुए कौन अब इश्क़ के बाज़ार में खोलेगा दुकाँ Share on: