वक़्त हर ज़ख़्म को भर देता है कुछ भी कीजे By Sher << इन से उम्मीद न रख हैं ये ... आजिज़ी कहने लगी गर हो बुल... >> वक़्त हर ज़ख़्म को भर देता है कुछ भी कीजे याद रह जाती है हल्की सी चुभन की हद तक Share on: