वस्ल हो जाए यहीं हश्र में क्या रक्खा है By Sher << दर्द-ओ-ग़म को भी है नसीबा... वस्ल के दिन शब-ए-हिज्राँ ... >> वस्ल हो जाए यहीं हश्र में क्या रक्खा है आज की बात को क्यूँ कल पे उठा रक्खा है Share on: