वो हवा-ख़्वाह-ए-नसीम-ए-ज़ुल्फ़ हूँ मैं तीरा-बख़्त By Sher << कैसे बुझाएँ कौन बुझाए बुझ... किन ज़मीनों पे उतारोगे इम... >> वो हवा-ख़्वाह-ए-नसीम-ए-ज़ुल्फ़ हूँ मैं तीरा-बख़्त क्यूँ न मरक़द पर करे दूद-ए-चराग़-ए-शाम रक़्स Share on: