वो निगाह-ए-शर्मगीं हो या किसी का इंकिसार By Sher << ख़ुद पे क्या बीत गई इतने ... जो सारा दिन मिरे ख़्वाबों... >> वो निगाह-ए-शर्मगीं हो या किसी का इंकिसार झुक के जो मुझ से मिला वो एक ख़ंजर हो गया Share on: