हर चंद 'वहशत' अपनी ग़ज़ल थी गिरी हुई By Sher << हम ने आलम से बेवफ़ाई की गर्दन झुकी हुई है उठाते न... >> हर चंद 'वहशत' अपनी ग़ज़ल थी गिरी हुई महफ़िल सुख़न की गूँज उठी वाह वाह से Share on: