किस तरह हुस्न-ए-ज़बाँ की हो तरक़्क़ी 'वहशत' By Sher << कुछ समझ कर ही हुआ हूँ मौज... ख़याल तक न किया अहल-ए-अंज... >> किस तरह हुस्न-ए-ज़बाँ की हो तरक़्क़ी 'वहशत' मैं अगर ख़िदमत-ए-उर्दू-ए-मुअ'ल्ला न करूँ Share on: