मैं ज़िंदगी को लिए फिर रहा हूँ कब से 'वक़ार' By Sher << इसी ख़याल से पलकों पे रुक... हम न कहते थे शाइरी है वबा... >> मैं ज़िंदगी को लिए फिर रहा हूँ कब से 'वक़ार' ये बोझ अब मिरे सर से उतरना चाहता है Share on: