वस्ल-ओ-हिज्राँ दो जो मंज़िल हैं ये राह-ए-इश्क़ में By Sher << ज़माने ने मुझ जुरआ-कश को ... शम्अ जो आगे शाम को आई रश्... >> वस्ल-ओ-हिज्राँ दो जो मंज़िल हैं ये राह-ए-इश्क़ में दिल ग़रीब उन में ख़ुदा जाने कहाँ मारा गया Share on: