यही दुनिया थी मगर आज भी यूँ लगता है By Sher << तर्क-ए-उम्मीद बस की बात न... लोग सर फोड़ कर भी देख चुक... >> यही दुनिया थी मगर आज भी यूँ लगता है जैसे काटी हों तिरे हिज्र की रातें कहीं और Share on: