ये और बात कि चाहत के ज़ख़्म गहरे हैं By Sher << जितनी आँखें थीं सारी मेरी... भर के साक़ी जाम-ए-मय इक औ... >> ये और बात कि चाहत के ज़ख़्म गहरे हैं तुझे भुलाने की कोशिश तो वर्ना की है बहुत Share on: