ये चराग़ जैसे लम्हे कहीं राएगाँ न जाएँ By Sher << आब-ए-हैराँ पर किसी का अक्... ग़ुर्बत का एहसान था हम पर >> ये चराग़ जैसे लम्हे कहीं राएगाँ न जाएँ कोई ख़्वाब देख डालो कोई इंक़िलाब लाओ Share on: