ये ज़िंदगी कुछ भी हो मगर अपने लिए तो By बचपन, Sher << ज़रा छुआ था कि बस पेड़ आ ... 'सख़ी' बैठिए हट क... >> ये ज़िंदगी कुछ भी हो मगर अपने लिए तो कुछ भी नहीं बच्चों की शरारत के अलावा Share on: