ये कैसी मौज-ए-करम थी निगाह-ए-साक़ी में By Sher << किस से करूँ मैं अपनी तबाह... उरूज-ए-माह को इंसाँ समझ ग... >> ये कैसी मौज-ए-करम थी निगाह-ए-साक़ी में कि उस के ब'अद से तूफ़ान-ए-तिश्नगी कम है Share on: