ये राज़ सुन रहे हैं इक मौज-ए-दिल-नशीं से By Sher << ज़िक्र था रंग-ओ-बू का और ... मौसम-ए-गुल का मगर क़ाफ़िल... >> ये राज़ सुन रहे हैं इक मौज-ए-दिल-नशीं से डूबे हैं हम जहाँ पर उभरेंगे फिर वहीं से Share on: